बंगाल विभाजन का इतिहास
History of Partition of Bengal in Hindi
बंगाल विभाजन का इतिहास (Bengal Partition History in Hindi)
19वी शताब्दी के प्रारंभ में अंग्रेजों के द्वारा किये गये कुछ परिवर्तन या कुछ फैसले ऐसे थे जिन्होंने भारत की स्वतन्त्रता में अभूतपूर्व योगदान दिया था. ऐसा ही एक फैसला था “बंगाल के विभाजन का फैसला,जिसे बंग-भंग के नाम से भी जाना जाता हैं. अंग्रेजों के बंगाल को तोड़ने के निर्णय के साथ ही देश में एक नई क्रान्ति की लहर दौड़ पड़ी थी, और स्वतन्त्रता के लिए प्रयासरत क्रांतिकारियों को एक नई दिशा भी मिल गयी थी. इससे अब तक अंग्रेजों का छूपा उद्देश्य और राज करने का तरीका भी खुलकर आम-जन के सामने आ गया था. इसलिए भले देश को इसके बाद भी 40-42 वर्ष तक स्वतंत्रता नहीं मिली हो लेकिन ये कहा जा सकता हैं कि इस निर्णय ने देश की स्वतंत्रता और विभाजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
बंगाल का विभाजन किसने किया (Who was responsible for the Partition of Bengal)
बंगाल विभाजन का फैसला ब्रिटिश वायसराय लार्ड कर्जन के द्वारा लिया गया था. हालांकि उस समय के राष्ट्रवादी नेताओं ने इस निर्णय और कर्जन का भारी विरोध किया था,जिससे इंडियन नेशनल कांग्रेस को आम-जन का भारी समर्थन मिलने लगा था.
बंगाल विभाजन कब हुआ (Year of Partition of Bengal)
16 अक्टूबर 1905 को हुए बंग-भंग से देश को बहुत बड़े परिवर्तन का सामना करना पड़ा था. हालाँकि इससे अंग्रेज सरकार के कुछ ऐसे उद्देश्य पूरे हुए जिससे अंतत: भारतीयों की बहुत हानि हुई. इससे पहले बंगाली हिन्दुओं की गवर्नेंस में काफी धाक थी जो कि इस विभाजन के बाद कम हो गयी. हिन्दुओं ने इस विभाजन का विरोध किया था. विभाजन से राष्ट्रीय स्तर पर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ रोष फ़ैल गया था,जिसमें हिंसक और अहिंसक आंदोलन शामिल थे. यहाँ तक कि वेस्ट बंगाल के नए बने प्रोविनेंस के गवर्नर की हत्या तक की भी प्लानिंग की थी.
बंगाल विभाजन क्यों किया (Reason of Partition of Bengal)
• बंगाल विभाजन का मुद्दा पहली बार 1903 में उठा था. इसके लिए कुछ अतिरिक्त प्रस्ताव भी आये थे,जिसमें चित्तागोंग (Chittagong) को अलग करना और ढाका और म्य्मेंसिंह (Mymensingh) को जिला बनाकर उन्हें आसाम में शामिल करना था. परंतु इस जानकारी की आधिकारिक घोषणा 1904 में की गई थी. इस विभाजन के लिए ब्रिटिश वायसराय ने बंगाल के पूर्वी जिलों का आधिकारिक दौरा किया,जिससे विभाजन पर आम जनों का मत भी जान सके. इस दौरान उसने बंगाल के कुछ महत्वपूर्ण व्यक्तियों से इस मुद्दे पर बात की,और ढाका,चित्तान्गोंग और म्य्मेंसिंह में में एक भाषण दिया जिसमे विभाजन पर सरकार का पक्ष समझाया. कर्जन ने इसके कारण भी समझाये कि “ब्रिटिश राज के अंतर्गत बंगाल, फ्रांस जितना बड़ा हैं,इसकी जनसंख्या ग्रेट ब्रिटेन और फ्रांस को मिलाकर जितनी हैं,इस कारण इसे तोड़ने से प्राशासनिक प्रगति होगी ”
• बिहार और उड़ीसा और पूर्वी क्षेत्र विशेष रूप से अंडर-गवर्नड थे. कहा जाता हैं कि कर्जन, हिन्दुओ का विभाजन नहीं चाहते थे,जो कि उस समय पश्चिम में मेजोरिटी में थे जबकि पूर्व में मुस्लिम थे. उनका प्लान आसाम (जो कि 1874 तक बंगाल का हिस्सा था)के पूर्वी भाग को वापिस जोड़ना था,और 31 लाख जनसंख्या वाले क्षेत्र का न्यू प्रोविंस बनाना था जिसमे 59% मुस्लिम थे.
• इस प्लान में ये भी शामिल था कि बंगाल में शामिल 5 हिंदी भाषी राज्यों को मिलाकर एक केंद्र में सेन्ट्रल प्रोविंस बनाया जाए. इसके बदले में पश्चिमी क्षेत्र में सम्बलपुर और 5 छोटे उड़िया भाषी राज्य सेन्ट्रल प्रोविंस से मिलने वाले थे. इससे बंगाल 141,580 स्क्वेयर मील के एरिया का बन जाता और इसकी जनसंख्या 54 मिलियन हो जाती जिसमें 42 मिलियन हिन्दू जबकि मुस्लिम 9 मिलियन होते. हालांकि पश्चिम में बंगाली बोलने वालो की संख्या बिहारी और उड़िया बोलने वालो की अपेक्षा काफी कम थी, नए प्रांत के प्रशासन में एक विधान परिषद, दो सदस्यों के राजस्व बोर्ड, और कलकत्ता उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को निर्विवाद छोड़ देना का सोचा गया था.
• सरकार ने ये भी कहा कि कि पूर्वी बंगाल और असम में स्पष्ट रूप से पश्चिमी सीमा और भौगोलिक, जातीय, भाषाई और सामाजिक विशेषताओं की सीमा तय की जाएगी. सरकार ने 19 जुलाई, 1905 के एक प्रस्ताव में अपना अंतिम निर्णय जारी किया, और इस तरह उसी वर्ष 16 अक्टूबर को भारत के इस महत्वपूर्ण हिस्से का विभाजन शुरू हुआ
• अंग्रेजों की इस सन्दर्भ में एक ही नीति थी “फूट डालो और राज करो”. लार्ड कर्ज़न ने कहा “बंगाल एक शक्तिशाली राज्य हैं,इसके विभाजन से बंगालियों में काफी तरीके से विभाजन हो जाएगा. वास्तव में बंगाली समुदाय ही पहला वर्ग था जिसने अंग्रेजी शिक्षा का लाभ उठाया था, समस्त बुद्दिजीवी और सिविल सर्विसेस में जाने वाले लोग में भी बंगाली समुदाय की प्रधानता थी.इसी तरह सरकारी महकमे
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